दिल्ली के एमसीडी 2022 चुनाव परिणाम का विश्लेषण – आप पार्टी का खुमार उतार पर, बीजेपी का ग्राफ बड़ा, कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में!

पिछले एक दो महीने से चल रही दिल्ली एमसीडी चुनाव की सरगर्मियां आखिरकार 7 दिसंबर की वोटों की गणना के साथ ही खत्म हो गई हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री जहां 250 में से 220 से 230 सीटों का सपना संजोए बैठे थे। वही एग्जिट पोल 149 से 171 सीटें देकर आप पार्टी की बंपर जीत दिखा रहा था। अंत में इन आंकड़ों के खेल में आप पार्टी पिछड़ गई और 134 के आंकड़े पर सिमट कर रह गई। यह आप पार्टी के मुखिया के लिए एक झटके से कम नहीं हैं। बहुमत मिलने के बाद भी आप पार्टी के मुखिया के साथ अन्य सदस्यों के चेहरे पर वो अल्हड़ खुशी नहीं दिख रही जो पहले के दिल्ली और पंजाब के चुनावों के समय दिखती थी। आप के मुखिया खुद ही जीत के बाद रोड शो करने निकल पड़ते थे। हमेशा खुद से सब कुछ ठीक करने का दंभ भरने वाले आप के मुखिया को आखिरकार जीत के कार्यक्रम के मंच से दिल्ली के विकास के लिए मोदीजी से गुहार लगाना, उनकी हताशा और इस चुनाव के बाद उनके घटते जनाधार का भय उनके चेहरे के बेमन की हंसी के पीछे का गम हैं। 

आप पार्टी का एमसीडी 2022 चुनाव के बाद भय:

यह कोई एक दिन में नही हुआ है। अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार के उन्मूलन, जन लोकपाल के लागू करने, सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग रोकने और जन साधारण की तरह जन सेवा के वादों के उलट, आप पार्टी आज की तारीख पर इन्ही बुराईयों के दलदल में धसती दिख रही हैं। अन्ना के कंधो पर चढ कर सत्ता के स्वाद को चखने वाली पार्टी से कई बार उनके गुरु अन्ना भी उनके सरकार चलने के तौर तरीकों पर नाखुश जाहिर कर चुके हैं। 

आप पार्टी के मुखिया का पार्टी के भविष्य को लेकर भय ऐसे ही नही हैं। पहली बार 2013 में अन्ना आंदोलन के चरम पर 28 सीटें जीतकर सबको आश्चर्य में डालने वाली आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल 28 दिसंबर 2013 ने कांग्रेस के सहयोग से दिल्ली के 7वे मुख्यमंत्री की शपथ ली। फिर कांग्रेस से मतभेदों के चलते 14 फरवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया। फिर लगभग एक साल राष्ट्रपति शासन लगा रहा। फिर 7 फरवरी 2015 को फिर से चुनाव होने की घोषणा के बाद आप का 8वा मुख्यमंत्री बना। पिछली बार से 24.८ प्रतिशत ज्यादा पाकर 54.3 प्रतिशत वोट के साथ 70 में से 67 सीटें जीती। इस समय सभी दिल्लीवासी अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी को बड़े परिवर्तन करने वाली पार्टी के रूप में देख रहे थे। उन्होंने सत्ता के आते ही कुछ अच्छे काम नए तरीके से करने की घोषणा भी की। कुछ वादों को जैसे बिजली फ्री, मोहल्ला क्लिनिक आदि को पूरा करने की कोशिश भी की। किंतु बाद में सरकार अपने अन्य राज्यों में विस्तार के लालच में दिल्ली में अच्छे कामों की निरंतरता को कायम रखने में नाकाम रही। घोषणाएं एक से एक किंतु धरातल पर नहीं दिखी। फिर सरकार के प्रति लोगो को सहानुभूति थी। फिर दिल्ली की जनता के बहुत से मतदाता ने 2020 में विश्वास जिताया। इस बार 54.3 प्रतिशत से ग्राफ गिरकर मामूली गिरावट के साथ 53.57 प्रतिशत पर पहुंचा और 70 में से 62 सीटें जीते। इन नतीजों से आप पार्टी को थोड़ी चिंता में डाला, किंतु सत्ता के अहम में इसे नजरंदाज किया। लेकिन कुछ मतदाता का नाखुश होना भी, लोकतंत्र में कब सैलाब बनता हैं, ये पता ही नही चलता। फिर आप ने पंजाब में सत्ता का स्वाद चखा। इसके बाद आप के वादों और घोषणाओं की झलक केवल समाचार पत्रों, सोशल मीडिया और कांफ्रेंस तक ही सीमित रहने लगी। मनलुभावन घोषणाओं का जमीन पर अवतरण नही दिखा, जिससे आम जनता तक उनकी कोई सुविधा नहीं पहुंची। ऊपर जिस मुख्य भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजाने के कारण आप का उदय हुआ तो 2022 आते आते उसके मुख्य नेता उसी दलदल में फसते नजर आए।

कुछ नेता तो ऐसे भी हैं, जिन्हे बिना जमानत दिए जेल में समय काटना पड़ रहा हैं। इसके बावजूद भी उनका मंत्री पद पर बने रहना, जनता में मायूसी लेकर आ रहा हैं। इन बातों का असर एमसीडी 2022 के चुनाव में परिलक्षित होते दिख रहा हैं। आप 42.05 प्रतिशत के वोट के साथ 250 में से 134 सीटें जीतने में सफल जरूर हुई है, लेकिन उनके वोट प्रतिशत में इतनी बड़ी गिरावट, आप पार्टी के मुखिया को सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है कि आखिर हमसे गलती कहां हुई हैं। इन चुनाव परिणामों से ये तो सिद्ध हो गया हैं कि आप पार्टी का प्रभाव दिल्लीवासियों के मतदाता पर कम होता जा रहा हैं। आने वाले चुनाव आप पार्टी के लिए बहुत ही कठिन होने वाले हैं। 

बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद भी फायदे:

वही ये चुनाव बीजेपी के लिए आशा की किरण लेके आए हैं। उन्होंने 39.09 प्रतिशत वोट के साथ 104 सीटे जीतकर एक सकारात्मक उपस्थिति दर्ज कराई हैं। लगभग 1 प्रतिशत की वोट वृद्धि उनके लिए आने वाले समय में एक बड़ी आशा लेकर आई हैं। आने वाले चुनाव बीजेपी के लिए बहुत ही सकारात्मक रहने वाले हैं। आप को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक कदम आगे बड़ा चुके हैं। 

कांग्रेस के लिए एमसीडी चुनाव परिणाम के मायने:

वही कांग्रेस 11.68 प्रतिशत के वोटों के साथ 9 सीटे जीतकर अपने लिए सांत्वना जीत हासिल की। शीला दीक्षित के समय की बड़ी पार्टी का ग्राफ इतने नीचे गिरना, उनके केंद्रीय नेतृत्व को बहुत ही गहन विचार विमर्श का कारण बन गया हैं। 

अन्य निर्दलीयों ने 3 सीटें जीतकर एमसीडी में अपनी उपस्थिति जताई हैं।

एमसीडी चुनाव 2022 के परिणाम का SWOT (Strength – ताकत) (weakness – कमजोरी) (Opportunity – अवसर) (Threat – खतरा) विश्लेषण:

Strength (ताकत): 

बीजेपी: यदि बीजेपी के लिए सकारात्मक (ताकत) बात करे तो वह अपने मूल वोट बैंक को नियंत्रित करके 1 प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब रही हैं। वह बड़ी उपलब्धि हैं| यही उनकी ताकत हैं| 

आप: कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर बनी पार्टी ने फिर से कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर, सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले ली हैं। कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाना इनकी ताकत हैं।

कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी की ताकत यह है वह शीला दीक्षित के 15 साल के कुछ अच्छे काम को दिखा सकते हैं और उनके मूल मतदाता को मना सकते हैं। 

weakness – कमजोरी:

बीजेपी: दिल्ली से बीजेपी के पूरे 7 सांसद होने के बाबजूद, मतदाता के बीच अपने अच्छे कामों को जमीन पर जाकर बताने में विफल रहे। यह उनकी कमजोरी हैं।

आप: आंदोलन से भ्रष्टाचार के खिलाफ उभरी पार्टी, आज भी कांग्रेस के कमजोर होने पर निर्भर हैं| यही उनकी कमजोरी हैं| 

कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी में दिल्ली में मतदाता को प्रभावित करने के लिए एक करिश्माई नेता की कमी, कांग्रेस पार्टी की कमजोरी हैं।

Opportunity – अवसर:

बीजेपी: बीजेपी ने इस चुनाव में 1 प्रतिशत वोटों का इजाफा किया है, जो उनकी मतदाता के बीच बढ़ती साख और विश्वास का प्रतीक हैं। आगे आप को दिल्ली से सत्ता हटाने में सफल हो सकते हैं।

आप: आंदोलन से भ्रष्टाचार के खिलाफ उभरी पार्टी आप को अवसर ये है कि वह कांग्रेस के मूल मतदाता में और सेंध लगा सकती हैं|  

कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी के लिए अवसर हैं कि वह स्थानीय स्तर के नेताओं को उभरने दे और जो नेता पार्टी के लिए समर्पित हैं, उनको आगे बढ़ाये| 

Threat -खतरा:

बीजेपी: बीजेपी के लिए सबसे बड़ा डर है कि मोदी के बाद कौन| वैसे बीजेपी को आने वाले समय में राज्य स्तर पर उभरे नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने के लिए ध्यान देना चाहिए| जहाँ मोदी जी की जरुरत नहीं हैं, वहां दूसरी पंक्ति वालों नेताओं को आगे आने का अवसर देना चाहिए, नहीं तो मोदीजी के संन्यास के बाद अचानक राष्ट्रीय स्तर पर करिश्माई नेतृत्व खड़ा करने में असुविधा होगी| यही बीजेपी के लिए खतरा बन सकती हैं| 

आप: लोकपाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करके सत्ता का स्वाद चखने वाली पार्टी के कई मंत्री जेल में है और कई इल्ज़ामों के जाने की तैयारी में हैं| उन पर अपने पार्टी के सिद्धांतो के अनुसार  इन इलज़ाम लगे मंत्रियों को सरकार में रखना या इस्तीफा न लेना, उनके खिलाफ जनता में आक्रोश पैदा कर सकता हैं, जिससे उनकी साख गिरने का पूरा खतरा हैं| 

कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ा खतरा, पार्टी की कमान कई बुजुर्ग नेताओं के हाथ में हैं, जो कि कांग्रेस के निर्णयों में पूर्ण दखल रखते हैं और  सभी निर्णय उनके पुरानी सोच के आधार पर होते हैं| वास्तव में देखे तो कांग्रेस को बुजुर्गों की पार्टी कहे तो कोई बड़ी बात नहीं| यही खतरे से पार्टी को उभरकर दूसरी पंक्ति के नेताओं को बड़ी जिम्मेवारी देकर थोड़ा उभरने का मौका देना चाहिए| 

लेखक: गहोई अश्विनी कुमार “गुप्त” (समीक्षक व विश्लेषक)

अस्वीकरण: इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पर आधारित हैं| इसमें  किसी भी प्रकार की अधूरी और अपुष्ट सूचना के लिए, वेबसाइट या उससे सम्बंधित कोई भी व्यक्ति की जिम्मेवारी नहीं होगी| इस जानकारी का उपयोग आप अपने विवेक के अनुसार करे| 

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