मंत्र जाप माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं, माला में समेरु मनके का क्या महत्व है!

मंत्रो के उच्चार के लिए जाप माला में 108 मनके क्यों होते हैं, समेरु मनका और कर माला का क्या महत्व है! 

यदि मानव ने इस धरती पर जन्म लिया है, तो मरण भी निश्चित है। जन्म से मरण के बीच मानव जीव कई सोपानों का पान करते हुए जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करता हैं। मानव अपने जीवन को सार्थक बनाने हेतु बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक कई प्रकार के शुभ कर्मों को करने की कोशिश करता हैं। इन्ही शुभ कर्मों में से एक अपने कुलदेवता और इष्ट की मंत्रोच्चार से पूजा करना भी है। देवताओं का अपने ऊपर आशीर्वाद बना रहे, इसके लिए हमें नित्य कुछ समय के लिए भगवान की भक्ति करना चाहिए। मंत्रो की 108 मनके (दाने) वाली माला से जाप करना, भगवान की भक्ति का एक महत्वपूर्ण सोपान हैं।

जाप माला के प्रकार:

जाप माला भी कई तरह की उपलब्ध हैं। उनमें से प्रमुख तुलसी, वैजयंती, रुद्राक्ष, कमल गट्टे, स्फटिक, पुत्रजीवा, अकीक और ratno ki मालाएं हैं। कार्यसिद्धियों और मंत्रो के उपचार के अनुसार मालाओं का उपयोग किया जाता हैं। 

जाप माला में 108 मनके क्यों?

जाप माला में 108 मनके या दाने होते है। 108 मनके को फेरकर ही मंत्रों का जाप किया जाता हैं। कया आप को जानकारी हैं कि माला में 108 ही मनके क्यों होते हैं। मंत्रो का जाप 108 बार ही क्यों किया जाता हैं। हम इस संबंध में आगे सटीक जानकारी देने जा रहे हैं। 

यदि हम ज्योतिष विज्ञान की बातें करे तो इस पुरातन विज्ञान के अनुसार ब्रह्मांड 12 भागो से मिलकर बना हुआ हैं। ये 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन हैं। इन 12 राशियों में 9 ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु भ्रमण करते हैं। जब इन 9 ग्रहों का ब्रह्मांड के 12 भाग यानी राशियों से गुणा किया जाता हर तो 108 अंक की प्राप्ति होती हैं। यदि ज्योतिष विज्ञान की बातें करे तो कुल 27 नक्षत्र होते है और प्रत्येक नक्षत्र के 4 भाग होते हैं। यदि जब 27 का गुणा 4 से किया जाता है तो कुल नक्षत्रों की संख्या 108 प्राप्त होती हैं। इसलिए जाप माला का एक एक मनका प्रत्येक नक्षत्र का प्रतिनिधित्व करता हैं। इस प्रकार देखे तो जाप माला का प्रत्येक मनका हमारे ब्रह्मांड में व्याप्त 12 राशियों, 9 ग्रहों और 108 नक्षत्रों का प्रतीक हैं। आप जो भी जाप करते है वह इस ब्रह्मांड में व्याप्त इन शक्तियों तक पहुंचता हैं। 

जाप माला कई प्रकार के पदार्थ से बने मनके से बनी होती हैं। इसलिए आपके मंत्र के प्रकार या कार्यसिद्धि के अनुसार इसका चयन करना चाहिए। 

माला में सुमेरू क्या है और उसका महत्व:

तारक या उद्धारक मंत्र जाप के लिए तुलसी की माला सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं। जाप माला में उपस्थित 108 मनके हमारे ह्रदय में स्थित 108 नाड़ियों का भी प्रतीक हैं। माला में एक 109 मनका भी होता है, को कि अन्य मनकों से अलग दिखता हैं। इस 109 वें मनके को सुमेरू कहते हैं।

माला जाप में सुमेरू को किसी भी परिस्थिति में लांघना नहीं चाहिए। इस सुमेरू तक पहुंचने पर इसे माथे पर स्पर्श कर माला जाप का अंत करना चाहिए। यदि आपको 108 मंत्र की एक ओर माला फेरना है तो सुमेरू पर पहुंचते ही माला को पलटकर पुनः जाप करना चाहिए। कभी भी सुमेरू यानी 109 वें मनके को लांघना नहीं चाहिए। 

जाप माला से मंत्र कैसे करें?

सबसे पहले आप मानसिक रूप से पवित्र होकर विचारहीन होकर किसी कपड़े की आसान पर सरल मुद्रा में बैठ जाए जिसमें आपका सिर, वक्ष और गर्दन एक सीधी रेखा में हो। मन को शांत चित्त होकर जाप माला के पहले मनके को अंगूठे और अनामिका के मध्य दबाकर मंत्रोच्चार करे फिर मध्यमा उंगली से मनके को खिसका दे यानी आगे बढ़ाएं फिर अगला मनका अंगूठे और अनामिका के बीच ले ले। इसी प्रक्रिया को माला के 108 मनके होने तक दोहराएं। यदि 108 मनके एक ही माला जपना है तो 109 सुमेरू मनके को माथे पर स्पर्श कर माला के जाप को समाप्त करे और जाप माला को कोई पवित्र स्थान पर संभालकर रख दे। 

किसी भी प्रकार की जाप माला न होने पर कर माला का उपयोग:

कई बार हमारे पास साधन कमी या किसी कारणवश जाप माला का इंतजाम न हो तो आप कर-माला से भी मंत्र जाप कर सकते हैं। उसका फल भी अन्य मालाओं की तरह मिलता हैं। माला के अभाव में करमाला द्वारा जप किया जाता है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जरा सी असावधानी हुई कि करमाला द्वारा जप खण्डित हो जाता है । इसमें साधक अधिक जागरूक रहता है । ब्रह्मगायत्री के लिए करमाला को प्रशस्त बताया गया है । हम कोई भी जप करमाला से कर सकते हैं ।

देवी रूप (महिला रूप) की आराधना के लिए मंत्र जाप के लिए करमाला उपयोग का तरीका:

यदि देवता महिला रूप में है तो करमाला से मंत्रोपचार करने हेतु नीचे लिखी विधि अपनाये| कर-माला में आप सीधे हाथ की उँगलियों के पर्व या उभर वाले १० हिस्से का उपयोग गिनने में करते हैं| आप अनामिका ऊँगली के मध्य पर्व से १ गिनती चालू करके, अधः पर्व को २ को गिनते हैं| फिर कनिष्ठा के अधः पर्व को ३, मध्य पर्व को ४  और उर्ध्व पर्व को ५  गिनते हैं| इसके बाद अनामिका के उर्ध्व पर्व को ६  गिनते हैं| इसके बाद आप मध्यमा के उर्ध्व पर्व को ७, मध्य पर्व को ८  और अधः पर्व को ९ गिनते हैं| फिर तर्जनी के अधः पर्व को १० गिनते हैं| उसके बाद तर्जनी के मध्य और उर्ध्व पर्व को सुमेरु माना जाता हैं, जिसे लांघा नहीं जाता हैं|  इसलिए तर्जनी के अधः पर्व से पलटकर गिनती चालू करते हुए अनामिका के मध्य तक पहुँचते हैं|  इस तरह ऐसा ५ बार करने से १०० मनके की गिनती हो जाती हैं|  अंत में अनामिका के अधः पर्व से गिनती चालू करके मध्यमा के अधः पर्व तक जाते हैं, इससे गिनती ८ हो जाती हैं|  इस प्रकार १०८ मनके के समान गिनती पूरी हो जाती हैं| 

देवता रूप (पुरुष रूप) की आराधना के लिए मंत्र जाप के लिए करमाला उपयोग का तरीका:

यदि देवता पुरुष रूप में है तो करमाला से मंत्रोपचार करने हेतु नीचे लिखी विधि अपनाये| कर-माला में आप सीधे हाथ की उँगलियों के पर्व या उभर वाले १० हिस्से का उपयोग गिनने में करते हैं| आप अनामिका ऊँगली के मध्य पर्व से १ गिनती चालू करके, अधः पर्व को २ को गिनते हैं| फिर कनिष्ठा के अधः पर्व को ३, मध्य पर्व को ४  और उर्ध्व पर्व को ५  गिनते हैं| इसके बाद अनामिका के उर्ध्व पर्व को ६  गिनते हैं| इसके बाद आप मध्यमा के उर्ध्व पर्व को ७ गिनते हैं| फिर तर्जनी के उर्ध्व पर्व को ८, मध्य पर्व को  ९  और अधः पर्व को १० गिनते हैं| इसमें मध्यमा के मध्य और अधः पर्व को सुमेरु माना जाता हैं, जिसे लांघा नहीं जाता हैं|  इसलिए तर्जनी के अधः पर्व से पलटकर गिनती चालू करते हुए अनामिका के मध्य तक पहुँचते हैं|  इस तरह ऐसा ५ बार करने से १०० मनके की गिनती हो जाती हैं|  अंत में अनामिका के अधः पर्व से गिनती चालू करके तर्जनी के मध्य पर्व तक जाते हैं, इससे गिनती ८ हो जाती हैं|  इस प्रकार १०८ मनके के समान गिनती पूरी हो जाती हैं| 

करमाला की विधि तथा शक्ति एवं देवों के जप में करमाला का रहस्य:

देवियों के मन्त्रजप में करमाला जैसी होगी उससे भिन्न प्रकार की करमाला देवों के मन्त्रजप में बतलायी गयी है ।

यहाँ हम यह बतलाना चाहते हैं कि करमाला से जप जब आरम्भ करें तो किस अंगुली के किस पर्व से शुरु करें और कहाँ तक करें । उस जप में किस अंगुली में सुमेरु होगा जिसका जपकाल में लंघन निषिद्ध है ।

करमाला का अर्थ कर की अंगुलियों से माला की भाँति जप करने से इसे करमाला कहा जाता है ।अथवा कर की अंगुलियाँ ही माला की तरह कार्य करने से भी इसे करमाला कहते हैं । 

चूँकि कर की अंगुलियों के पर्वों द्वारा माला की भाँति जप किया जाता है । इसलिए भी इसका करमाला नाम पड़ा –

करांगुलिभिर्मालयेव जपनात् कररूपा माला, करांगुल्य: माला इव करमाला, करपर्वरूपमाला इत्यर्थ: .

मुण्डमाला तन्त्र में सामान्यतया करमाला का निरूपण इस प्रकार है-

अनामिकात्रयं पर्व कनिष्ठात्रितयं तथा । तर्जनीमूलपर्यन्तं करमाला प्रकीर्तिता ।।

अनामिका के तीनों पर्व तथा कनिष्ठिका के तीनों पर्व और तर्जनी का मूल अर्थात् अध: पर्व ( सबसे नीचे वाला पर्व )

पर्यन्त को करमाला कहते हैं । यह शक्ति और उनसे भिन्न सभी देवों के लिए है । पर जप क्रम में पर्वों का भेद होगा। जो आगे सुस्पष्ट करेंगे।

शक्ति के विषय में करमाला की विधि:

इसमें जप अनामिका के मध्य पर्व से आरम्भ करके अध: पर्व से चलते हुए कनिष्ठिका के अध:पर्व, मध्यपर्व, ऊर्ध्वपर्व से अनामिका के ऊर्ध्व पर्व पर होते हुए मध्यमा के ऊर्ध्व पर्व से नीचे उतरते हुए तर्जनी के मूल पर्व तक जायें ।

तर्जनी का मध्य और ऊर्ध्व पर्व सुमेरु माना गया है ।इसका लंघन न करें ।

अर्थात् उन दोनों पर्वों का जप में उपयोग नहीं लेना है । पुन: तर्जनी के मूल पर्व से वहाँ जैसे गये हैं वैसे ही लौटकर अनामिका के मध्य पर्व पर आकर रुकें ।

इस प्रकार ५ वार करने से १०० की संख्या में जप हो जायेगा । पुन: अन्त में अनामिका के मूल पर्व से पूर्ववत् मध्यमा के मूल पर्व तक जप करने से १०८ वार जप की संख्या पूर्ण हो जायेगी–

अनामिकात्रयं पर्व कनिष्ठा च त्रिपर्विका । मध्यमायाश्च त्रितयं तर्जनीमूलपर्विका ।।

करमाला समाख्याताआरभ्यानामिकान्तरात् ।-इति शक्तिविषये मुण्डमालातन्त्रम्

तर्जनी के ऊपर एवं मध्य पर्व पर जप करके संख्या की पूर्ति नहीं करनी चाहिए । ऐसा करना निषिद्ध है। इसलिए ऐसे जापक को पापी कहा गया है ।

तर्जन्यग्रे तथा मध्ये यो जपेत् स पापकृत् ।।

-इति शक्तिविषये मुण्डमालातन्त्रम्

शक्ति के मन्त्रों में शेष ८ संख्या का जप

अनामिका के मूल पर्व से शुरु करके पूर्वोक्त क्रम से कनिष्ठिका के पर्वों से होते हुए मध्यमा के मूल पर्व तक जप करें –

अनामामूलमारभ्य प्रादक्षिण्यक्रमेण तु । मध्यमामूलपर्यन्तं जपेदष्टषु पर्वषु।।

–श्यामारहस्यम्

शक्ति से भिन्न देवों के लिए करमाला की विधि:

अनामिका के मध्य पर्व से आरम्भ करके पूर्ववत् जप करते हुए मध्यमा के ऊर्ध्व पर्व से ( नीचे न उतरें ) तर्जनी के ऊर्ध्व पर्व से मूल पर्व तक आयें । यहाँ मध्यमा के मध्य और अध: पर्व सुमेरु माने गये हैं । इसका लंघन नहीं करना है ।

पुन: तर्जनी के मूल पर्व से लौटकर क्रमश: अनामिका के मध्य पर्व तक जप करें । २० वार जप हुआ । इस प्रकार ५वार करने पर १०० संख्या पूर्ण हुई । पुन: अनामिका के मूल ( सबसे नीचे वाले पर्व ) से तर्जनी के मध्य पर्व तक जप करने से ८ संख्या हो जायेगी । इस प्रकर १०८ जप हो जायेगा –

तर्जनी मध्यमाSनामा कनिष्ठा चेति ता: क्रमात् ।तिस्रोSङ्गुल्यस्त्रिपर्वाणो मध्यमा चैकपर्विका ।।

पर्वद्वयं मध्यमाया मेरुत्वेनोपकल्पयेत् ।–इति शिवरहस्यीयं शक्तिभिन्नविषयम्

सनत्कुमार संहिता में भगवती से भिन्न देवों के १०० संख्या तक पूर्वोक्तरीत्या जप सम्पन्न हो जाने पर, शेष ८ वार का जप इस प्रकार कहा गया — 

अनामामूलमारभ्यकनिष्ठादिक्रमेण तु । तर्जनीमध्यपर्यन्तमष्टपर्वषु संजपेत् ।

अनामिका के मूल पर्व से आरम्भ करके तर्जनी के मध्य पर्व तक जप करके ८ संख्या पूर्ण कर लेनी चाहिए ।

विशेष–शक्ति और विभिन्न देवों की करमाला सभी में १००संख्या के बाद शेष ८ संख्या का जप अनामिका के मूल पर्व से ही करना है, मध्य पर्व से नहीं ।

इस प्रकार करमाला का सप्रमाण विवेचन किया गया ।

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